कुमार अनेकान्त की कवितायें
Sunday, August 22, 2021
तालिबान होते जा रहे हैं
*अपनों को ही मिटाने में, कुर्बान होते जा रहे हैं ।*
*हम भी कहीं न कहीं, तालिबान होते जा रहे हैं ।।*
*कुमार अनेकान्त©*
23/08/2021
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