Tuesday, July 23, 2019

चाहो तो ......

चाहो तो ......

चाहो तो
बह भी सकते हो
चाहो तो तैर भी
सकते हो
वक्त एक
नदी की धार
जैसा है
हमारे पूर्व कर्मों के
फलों की
कतार जैसा है

बहोगे तो वही होगा
जो तकदीर में होगा
तैरोगे तो तकदीर
लिख भी सकते हो

भुजाओं में हो ताकत
तो लड़ भी सकते हो
धारा से बगावत
कर भी सकते हो

बहाव तेज हो तो
बहाता है
अच्छे अच्छों को
मगर लड़ता है मनुज
यह मानकर कि
तुम धारा मोड़ सकते हो

चाहो तो भरोसे
बहाव के
खुद को छोड़ सकते हो
और चाहो तो
खुद ये बंधन
तोड़ सकते हो

     - कुमार अनेकांत©
२३/०७/२०१९

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