कुमार अनेकान्त की कवितायें
Wednesday, February 20, 2013
धर्म /संप्रदाय की समीक्षा
दूसरे के धर्म /संप्रदाय की समीक्षा करते वक्त हम जितने यथार्थवादी हो जाते हैं उतने यथार्थवादी यदि अपने धर्म/संप्रदाय की समीक्षा में हो जाएँ तो शायद हम सत्य को जान पायें | -कुमार अनेकान्त
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment