*क्षणिकाएं*
-कुमार अनेकान्त
*बोली*
हम लगवाएं
तो धर्म
दूसरे लगवाएं
तो व्यवसाय
*दान*
हमें दो
तो पुण्य
उन्हें दो
तो पाप
*सम्यग्दर्शन*
हमें मानो
तो सम्यग्दृष्टि
अन्य को मानो
तो मिथ्यादृष्टि
*पुण्य-पाप*
हम कुछ भी करें
वो पुण्य
तुम कुछ भी करो
वो पाप
धर्म-अधर्म का आधार
कब का डूब मरा
खरा सो मेरा
नहीं ,अब
मेरा सो खरा
No comments:
Post a Comment