कुमार अनेकान्त की कवितायें
Tuesday, January 14, 2020
मेरी संक्रांति दूर करो
मेरी भावनाओं की एक
पतंग
तुम्हारे दिल की
छत पर
कब से अटकी पड़ी है
उसकी छुड़ैय्या
दे दो
मेरी भी संक्रांति
मना दो
- कुमार अनेकांत
१४/०१/२०२०
मकर संक्रांति
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