*जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए*
©कुमार अनेकान्त
(09/10/25)
मेरी डाल के पंछी ,
उसकी डाल गए ।
जैसे सब बदले ,
तुम भी बदल गए ।।
गिरगिट की है फितरत,
तुम क्यों रंग गए ।
बदलते हुए चेहरे
खुद अपना भूल गए ।।
जैसे सब बदले ,तुम भी बदल गए ।
गरज थी तब चौखट,
घर की घिस गए ।
मतलब निकला दामन,
तुम भी ले गए ।।
जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।
स्वारथ की थी दुनिया ,
एक तुम्ही थे आस भए ।
रंज यही बिन बोले,
तुम क्यों निकल गए ।।
जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।