Friday, October 10, 2025

किताब

किताब 
..........

मैं
पहले छपती थी 
फिर
बिकती थी 
अब 
पहले बिकती हूँ
तब जाकर
किसी तरह छपती हूँ
और 
पहले भी तभी बिकती हूँ 
जब लेखक 
खुद खरीदता है 
और निःशुल्क 
बांटता है 
फिर भी ज्ञान का 
पुलिंदा कोई लेना 
नहीं चाहता है 
क्या करें 
जमाना बहुत तेजी से बदल गया है 
जो पहले फुटपाथ
पर बिकते थे 
वे जूते शोरूम में बिक रहे हैं 
और हम फुटपाथ पर 
किलो के भाव तुल रहे हैं 
फिर भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं ।

✍️  कुमार अनेकान्त
10/10/25
Amar Bharti Daily ,Delhi 13/10/25

Tuesday, October 7, 2025

जैसे सब बदले ,तुम भी बदल गए ।

*जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए*
©कुमार अनेकान्त
(09/10/25)

मेरी डाल के पंछी ,
उसकी डाल गए ।
जैसे सब बदले ,
तुम भी बदल गए ।।

गिरगिट की है फितरत,
तुम क्यों रंग गए ।
बदलते हुए चेहरे
खुद अपना भूल गए ।।

जैसे सब बदले ,तुम भी बदल गए ।

गरज थी तब चौखट,
घर की घिस गए ।
मतलब निकला दामन,
तुम भी ले गए ।।

जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।

स्वारथ की थी दुनिया ,
एक तुम्ही थे आस भए ।
रंज यही बिन बोले,
तुम क्यों निकल गए ।।

जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।