Friday, October 10, 2025

किताब

किताब 
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मैं
पहले छपती थी 
फिर
बिकती थी 
अब 
पहले बिकती हूँ
तब जाकर
किसी तरह छपती हूँ
और 
पहले भी तभी बिकती हूँ 
जब लेखक 
खुद खरीदता है 
और निःशुल्क 
बांटता है 
फिर भी ज्ञान का 
पुलिंदा कोई लेना 
नहीं चाहता है 
क्या करें 
जमाना बहुत तेजी से बदल गया है 
जो पहले फुटपाथ
पर बिकते थे 
वे जूते शोरूम में बिक रहे हैं 
और हम फुटपाथ पर 
किलो के भाव तुल रहे हैं 
फिर भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं ।

✍️  कुमार अनेकान्त
10/10/25

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