हमें जमाने के दस्तूर में जीना नहीं आया
- कुमार अनेकान्त
कभी झूठी बातें बनाना नहीं आया
जब काम पड़े तब पटाना नहीं आया
हम हक़ीक़त के ही कायल रहे हरदम
स्वार्थ में लोगों को फंसाना नहीं आया
वो फ़रेब के इतिहास बनाता ही चला गया
हम ठगे गए ,हमें ये भी बताना नहीं आया
जिनका पता है दोहरा चरित्र साफ साफ
मुख पर उनकी तारीफ़ करना नहीं आया
अपमान का एक घूंट भी पीना नहीं आया
गलत देख चुपचाप ही सहना नहीं आया
दिखा देते हैं उसे नाराजगी नाराज हैं जिससे
रूठकर भी मुस्कुराकर मिलना नहीं आया
अध्यात्म की दुनिया में भी चलता है दिखावा
देखा बहुत अभी तक समझ में नहीं आया
नसीहतें हैं कि चलो तुम भी उनके उसूलों पर
हमें जमाने के दस्तूर में जीना नहीं आया
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