संसारसुलहो होदि
परेसु खलु परत्ताणुसंधाणं ।
अप्पणेसु अपणत्तं
अणुसंहाणदुल्लहो होदि ।।
इस संसार में पराये लोगों में पराये पन को खोजना भले ही आसान हो लेकिन अपनों में अपनापन खोजना वास्तव में दुर्लभ है ।
दूसरा अर्थ
पर में पराये पन का बोध फिर भी आसान है लेकिन अपनी आत्मा में अपनापन दुर्लभ है - इस संसार में कितना आश्चर्य है ?
कुमार अनेकांत
11/3/2024
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