सुन्दरजीवणं होइ दव्वणतलइव हु णायगणाणिस्स ।
सागदसव्वस्स अत्थि अप्पसंगहो कस्सवि णत्थि ।।
भावार्थ -
ज्ञायक ज्ञानी का जीवन दर्पण के तल के समान निश्चित ही बहुत सुंदर होता है ,क्यों कि वहाँ स्वागत सभी ज्ञेयों का होता है किंतु आत्मा में संग्रह किसी पदार्थ का नहीं होता ।
कुमार अनेकान्त©
7/07/25
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