अनेकान्त स्पंदन
- कुमार अनेकान्त
यदि किसी के भी प्रति है नफरत और बैर ।
तो मंदिर मस्जिद जाना सिर्फ है एक सैर ।।
यदि बैर वायरस से खुद को रखना है महफूज़ ।
इंस्टाल करें एंटीवायरस क्षमा सदा रहें महफूज़ ।।
जब तक दिल में खोट है मन में है पाप ।
तब तक हैं व्यर्थ सारे सिद्धि मंत्र और जाप ।।
गर क्रोध मान माया लोभ जीवन में शेष ।
व्यर्थ चले जाते हैं सब पूजन पाठ अभिषेक ।।
यदि करुणा दया का नहीं जीवन में विस्तार ।
क्रियाकांड सब व्यर्थ है नहीं निकला कुछ सार ।।
आत्मज्ञान ही ज्ञान है शेष सभी अज्ञान ।
गर्दभ ढोते शास्त्र बहुत नहीं होता कुछ भान ।।
कैसे करे स्वयं का सच्चा अनुभव अभिराम ।
पर पीड़ा की अनुभूति जो कर न सके इंसान ।।
बाहर की दुनिया में हम इतने मस्त हैं ।
खुद से ही मिलने की सभी लाइनें व्यस्त हैं ।।
त्याग धर्म शुद्ध भाव है ,दान हमारा शुभभाव ।
पहला खुद पर उपकार है दूजा परोपकार ।।
कर्मों की दुनिया में भ्रष्टाचार नहीं चलता ।
करे कोई भरे कोई यह अनाचार नहीं चलता ।।
अंदर बाहर एक हो नर वो ही है महान् ।
तारे भव समुद्र से आर्जव धर्म महान् ।।
जीने वाले ही झुकना जानते हैं ,
ये हुनर मुर्दे में कहाँ मानते हैं ।
हो नर तो नम्रता में सम्मान मानो ,
उठते वही हैं जो झुकना जानते हैं ।।
आज दिल के रंजो गम चलो मिलकर साफ कर दें ,
जियेंगे कब तक घुटन में अब सभी को माफ कर दें ।
माँग लें माफी गुनाहों की जो अब तक हमने किये ,
अब नहीं कोई शिकायत दुनिया को यह साफ कर दें ।।
दोष गैरों के देखकर ही उम्र गुजार दी,
इनायत खुद पर भी नजरें हम आज कर दें ।
आईना ही करते रहे साफ हम तमाम उम्र ,
चलो धूल चेहरे की भी अब साफ कर दें ।।
continue ...
No comments:
Post a Comment