Tuesday, October 7, 2025

जैसे सब बदले ,तुम भी बदल गए ।

*जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए*
©कुमार अनेकान्त
(09/10/25)

मेरी डाल के पंछी ,
उसकी डाल गए ।
जैसे सब बदले ,
तुम भी बदल गए ।।

गिरगिट की है फितरत,
तुम क्यों रंग गए ।
बदलते हुए चेहरे
खुद अपना भूल गए ।।

जैसे सब बदले ,तुम भी बदल गए ।

गरज थी तब चौखट,
घर की घिस गए ।
मतलब निकला दामन,
तुम भी ले गए ।।

जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।

स्वारथ की थी दुनिया ,
एक तुम्ही थे आस भए ।
रंज यही बिन बोले,
तुम क्यों निकल गए ।।

जैसे सब बदले,तुम भी बदल गए ।

Tuesday, September 30, 2025

अनेकान्त स्पंदन

अनेकान्त स्पंदन 
                
              - कुमार अनेकान्त 


यदि किसी के भी प्रति है नफरत और बैर ।
तो मंदिर मस्जिद जाना सिर्फ है एक सैर ।।

यदि बैर वायरस से खुद को रखना है महफूज़ ।
इंस्टाल करें एंटीवायरस क्षमा सदा रहें महफूज़ ।।

जब तक दिल में खोट है मन में है पाप ।
तब तक हैं व्यर्थ सारे सिद्धि मंत्र और जाप ।।

गर क्रोध मान माया लोभ जीवन में शेष ।
व्यर्थ चले जाते हैं सब पूजन पाठ अभिषेक ।।

यदि करुणा दया का नहीं जीवन में विस्तार ।
क्रियाकांड सब व्यर्थ है नहीं निकला कुछ सार ।।

आत्मज्ञान ही ज्ञान है शेष सभी अज्ञान ।
गर्दभ ढोते शास्त्र बहुत नहीं होता कुछ भान ।।
 
कैसे करे स्वयं का सच्चा अनुभव अभिराम ।
पर पीड़ा की अनुभूति जो कर न सके इंसान ।।

बाहर की दुनिया में हम इतने मस्त हैं ।
खुद से ही मिलने की सभी लाइनें व्यस्त हैं ।।

त्याग धर्म शुद्ध भाव है ,दान हमारा शुभभाव ।
पहला खुद पर उपकार है दूजा परोपकार ।।

कर्मों की दुनिया में भ्रष्टाचार नहीं चलता । 
करे कोई भरे कोई यह अनाचार नहीं चलता ।।

अंदर बाहर एक हो नर वो ही है महान् ।
तारे भव समुद्र से आर्जव धर्म महान् ।।

जीने वाले ही झुकना जानते हैं ,
ये हुनर मुर्दे में कहाँ मानते हैं । 
हो नर तो नम्रता में सम्मान मानो ,
उठते वही हैं जो झुकना जानते हैं ।।

आज दिल के रंजो गम चलो मिलकर साफ कर दें ,
जियेंगे कब तक घुटन में अब सभी को माफ कर दें ।
माँग लें माफी गुनाहों की जो अब तक हमने किये ,
अब नहीं कोई शिकायत दुनिया को यह साफ कर दें ।।

दोष गैरों के देखकर ही उम्र गुजार दी,
इनायत खुद पर भी नजरें हम आज कर दें ।
आईना ही करते रहे साफ हम तमाम उम्र ,
चलो धूल चेहरे की भी अब साफ कर दें ।।

continue ...

Wednesday, August 27, 2025

सराग सम्यग्दर्शन

सराग सम्यग्दर्शन 


मंदकसाओ पसमो असारसंसारभओ संवेगो ।
जीवदया अणुकंपा  , तच्चसद्धा खलु अत्थिक्कं ।।

भावार्थ - 
मंद कषाय भाव 'प्रशम', असार संसार से भय 'संवेग',जीवों के प्रति दया का भाव 'अनुकंपा' और जीवादि तत्त्वों के प्रति विश्वास 'आस्तिक्य' कहलाता है । (इन चार लक्षणों  से युक्त सराग सम्यग्दर्शन होता है ।)

कुमार अनेकान्त 
28/08/25

Friday, August 22, 2025

दुश्मनों तुम ज़रा बाद में हमला करना,

दुश्मनों तुम ज़रा बाद में हमला करना,
हम अभी आपसी लड़ाइयों में मशगूल हैं ।
- कुमार अनेकान्त 23/08/25

गुनाह तब है

कौन कहता है बड़ी लकीरें न खींची जाए ।
गुनाह तब है जब पुरानी को मिटाया जाय ।।

कुमार अनेकान्त
20/08/ 25

Friday, August 1, 2025

बहुत मुश्किल है बच पाना



जहां को जीतकर भी जहाँ भाता है  हारते चला जाना ।
उसके सजदे में सर का खुद ब खुद 
यूं झुकते चला जाना ।।
जान से प्यारे पर ही जान का कुर्बान हो जाना ।
मोहब्बत की इस रिवायत से बहुत मुश्किल है बच पाना । ।

कुमार अनेकान्त 
2/08/25

Sunday, July 20, 2025

लोकप्रिय

लोकप्रिय 

जं सच्चं सव्वदा ण होदि लोयप्पिअं  खलु संसारे ।
जं लोयप्पिअं होदि सव्वदा ण होदि  खलु सच्चं ।।

जो सही है, वो हमेशा लोकप्रिय नहीं होता,और जो लोकप्रिय होता है,वो हमेशा सही नहीं होता!

कुमार अनेकान्त©
21/07/25

Thursday, July 17, 2025

ख्वाहिश


न जाने किस साजिश में फँसते जा रहे हैं
भरी महफ़िल में भी अकेले होते जा रहे हैं

अरसा गुजरा उन्हें मनाने की कोशिश में 
जितना करीब माना उतने दूर जा रहे हैं

तुम बेख़बर रहे हो हमारे हाल चाल से 
और हम तेरी फ़िक्र में  जले जा रहे हैं

ख्वाहिश कब मुक्कमल होती हैं यहाँ
फिर भी ख्वाहिशों में जिये जा रहे हैं 

©kumar Anekant
17/07/24

Sunday, July 6, 2025

ज्ञानी का जीवन


सुन्दरजीवणं होइ दव्वणतलइव हु णायगणाणिस्स ।
सागदसव्वस्स अत्थि अप्पसंगहो कस्सवि णत्थि  ।।

भावार्थ - 

ज्ञायक ज्ञानी का जीवन दर्पण के तल के समान निश्चित ही बहुत सुंदर होता है ,क्यों कि वहाँ स्वागत सभी ज्ञेयों का होता है किंतु आत्मा में संग्रह किसी पदार्थ का नहीं होता ।

कुमार अनेकान्त©
7/07/25

Saturday, June 21, 2025

शब्द भी भोजन होते हैं

सद्दो वि खलु भोयणं , सादो वि हवइ वरं चखदु पढमं ।
जइ ण अणुभवइ दुक्खं , हवदि अण्णं वि सुहकारणं ।।

शब्द भी भोजन हैं ,उसमें स्वाद भी होता है,इसलिए दूसरों को परोसने से पहले खुद चख लेना चाहिए । यदि वह आपको खराब नहीं लगता है ,(स्वादिष्ट लगता है )तभी वह अन्य को भी सुख का कारण बनेगा ।

कुमार अनेकान्त 
22/06/25

Wednesday, February 12, 2025

प्राकृत वेलेंटाइन डे

प्राकृत वेलेंटाइन डे 


हिययेण वरं विक्खं  ,
लग्गदु पज्जावरणरक्खणस्स वि।
छाया होदि ण घावं
हविस्सदि सव्वकल्लाणं वि ।।

दिल लगाने से अच्छा है पेड़ लगाओ । वो छांव देता है घाव नहीं । (ऐसा करने से ) पर्यावरण का रक्षण भी होगा और सभी का कल्याण भी होगा ।

अनेकान्त 
14/2/25