Friday, September 20, 2024

उत्तम क्षमा

उत्तम क्षमा 

यदि किसी के लिए दिल में बैर है 
तो मंदिर जाना सिर्फ एक सैर है 
किसी भक्त का करते अपमान हैं 
तो भगवान् की पूजा एक स्वांग है 
श्रुत के विपरीत मन का ही गान है 
तो प्रवचन नहीं सिर्फ व्याख्यान है 
छूटा है धर्म यदि किसी का 
तुम्हारे
कटु वचनों से 'अनेकांत'
अक्षम्य है अपराध ,दुरभिमान है ।

- कुमार अनेकांत 
18/09/24 क्षमावाणी पर्व 

Thursday, September 5, 2024

शिक्षक दिवस

लिखता मैं हूँ 
मगर उसमें क्रांति का हुनर तुम्हारा है 
बोलता मैं हूँ 
मगर बातों में असर तुम्हारा है 
पढ़ाता मैं हूँ 
मगर उसमें ज्ञान का समुंदर तुम्हारा है 
मुझे बनाने में जो 
खुद स्वाहा होते गए
ऐसे गुरुओं को 
नमन हमारा है 

-प्रो अनेकांत कुमार जैन
5/09/24

प्रथम गुरु पूज्य माता -पिता , समस्त जीवन के समस्त गुरुजनवृन्द को शिक्षक दिवस पर सादर समर्पित

Tuesday, July 16, 2024

न जाने किस साजिश में फँसते जा रहे हैं

न जाने किस साजिश में फँसते जा रहे हैं
भरी महफ़िल में भी अकेले होते जा रहे हैं

अरसा गुजर गया उन्हें मनाने की कोशिश में 
जितना करीब थे उतने ही दूर होते जा रहे हैं

तुम बेख़बर रहे हो हमारे हाल चाल से 
और हम तेरी फ़िक्र में  जले जा रहे हैं

ख्वाहिश कब मुक्कमल होती हैं यहाँ,
फिर भी ख्वाहिशों में मरे जा रहे हैं

कुमार अनेकांत 
17/7/24

Tuesday, June 11, 2024

मम दुक्खं हु परिक्खा

मम दुक्खं हु परिक्खा
अण्णस्स अत्थि दुस्कम्मस्स फलं ।
जीवणे पक्खवादो
दुल्लहो खलु अप्पदंसणं ।।


भावार्थ -
जो मुमुक्षु अपने खुद के दुःख को परीक्षा और
दूसरों के दुःख को कर्मों की  सजा मानते हैं,उनके जीवन में इतना पक्षपात है कि आत्मदर्शन दुर्लभ है ।

कुमार अनेकांत

Thursday, May 9, 2024

माँ की गाथा

अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर 

नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना |
या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः ||

कौशल तिवारी 10/05/20


*णमो माआअ*
.............

*जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।*

*तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।*

भावार्थ - 

जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है  नमन है ।
Anekant Kumar Jain

Friday, April 19, 2024

युवाओं मत मानो महावीर

*युवाओं तुम मत मानो महावीर*

मत मानो महावीर को 
पर उन्हें  जान तो लो 
आश्चर्य है
आज पाखंडों को देख
तुम्हें धर्मों से नफ़रत हो गई है 
पर स्वार्थी दुनिया के अनंत पाखंड देखकर भी तुम उसमें तो लगे हुए हो ,क्यों ? 
क्यों कि तुम्हें उसी दुनिया से अपना काम बनाना है ।
ठीक यही काम धर्म के साथ करो ,
कुछ धर्मात्माओं के पाखंड देखकर ,धर्म से नफरत मत करो ।
इसलिये कहता हूं ,भले ही अभी
धर्म को मत मानो ,पर जान तो लो ,
आत्म धर्म को समझना तुम्हारा मौलिक अधिकार है ।
आज जान लोगे तो कल पाल भी लोगे ।
पालन के भय से उसे यदि आज जान भी न पाए तो जब एक दिन दुनिया का यथार्थ समझ में आ जायेगा और
अंत हीन भटकन से उकता 
जाओगे ,
तब ,कहाँ जाओगे ?
महावीर को जानोगे 
उनसे कला सीखे रहोगे
तो ऐसे आड़े वक्त पर वे और उनका तत्वज्ञान काम आएंगे।
तुम्हें तुम्हारा भान करवाएंगे ।
अपने आत्मा को जानने और अनुभव करने की कला तुम्हें तब काम आएगी ,
आज समझ लोगे तो कल
नैया पार लग जायेगी ।

--
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
20/4/24

Sunday, March 10, 2024

आपने में अपनापन - प्राकृत गाथा

संसारसुलहो होदि 
परेसु खलु परत्ताणुसंधाणं ।
अप्पणेसु अपणत्तं 
अणुसंहाणदुल्लहो होदि ।।


इस संसार में पराये लोगों में पराये पन को खोजना भले ही आसान हो लेकिन अपनों में अपनापन खोजना वास्तव में दुर्लभ है  । 

दूसरा अर्थ 

पर में पराये पन का बोध फिर भी आसान है लेकिन अपनी आत्मा में अपनापन दुर्लभ है - इस संसार में कितना आश्चर्य है ? 

कुमार अनेकांत
11/3/2024

Monday, February 19, 2024

णमो आयरियविज्जासायराणं


*णमो आयरियविज्जासायराणं*

समणपरंवरसुज्जं
सययसंजमतवपुव्वगप्परदं।
चंदगिरिसमाधित्थं 
णमो आयरियविज्जासायराणं ।।


श्रमण परम्परा के सूर्य , सतत संयम तप पूर्वक आत्मा में रमने वाले और चंद्रगिरी तीर्थ पर समाधिस्थ (ऐसे) आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी को हमारा कोटिशः नमोस्तु । 

विनयवंत 

प्रो फूलचंद जैन प्रेमी
डॉ मुन्नी पुष्पा जैन ,वाराणसी

प्रो अनेकांत कुमार जैन ,
डॉ रुचि जैन ,नई दिल्ली 

एवं 

सम्पूर्ण पागद-भासा परिवार

स्वावलंबन सूत्र

सावलंबणसुत्तं

सुणरट्ठो सुणभरहो
सिघ्घं सूणसिंहासणसंदेसं
सावलंबणसुत्तं
गोकरघाभारदभासा च

सुनो राष्ट्र ! ,सुनो भारत ! (आचार्य विद्यासागर जी के बिना अब) सूने पड़ चुके इस सिंहासन का संदेश भी शीघ्र सुनो ! कि गोरक्षा, हथकरघा,भारतनाम और मातृभाषा ये चार देश के स्वावलबनसूत्र मूलस्तंभ हैं ।

कुमार अनेकांत 
19/2/24

Thursday, February 15, 2024

वो मुझसे प्यार नहीं करती

वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

रोज सुबह पांच बजे उठती है
बच्चों का टिफिन बनाती है
और मेरे लिए चाय 
अखबार छुपा देती है 
ताकि मैं जल्दी नहाकर
मंदिर हो आऊं 
जबरजस्ती मॉर्निंग वॉक पर 
ले जाती है
मेरा मनपसंद खाना भी नहीं देती है 
वैसा खाना देती है जिससे 
वजन न बढ़े और मैं स्वस्थ्य रहूं 
मुझे क्या पहनना है 
किस रंग का पहनना है
अधिकार पूर्वक तय करती है 
विश्वविद्यालय जाते समय 
पर्स, मोबाइल,पेन,रुमाल
बैग हाथ में दे देती है 
वहाँ पहुंचते ही फ़ोन करती है 
अच्छे से पहुंच गए न 
लंच के बाद पूछती है 
दवा ले ली न
इस बीच कपड़े धो देती है 
बाजार से सामान ले आती है 
बच्चों को स्कूल से लाती है 
शाम को फोन करती है 
कब तक पहुंचोगे 
शाम के खाने को देर मत करना
घर आते ही पूछती है दिन कैसा रहा ?
मेरी उलझने सुनती है 
सुलझाने की कोशिश करती है
कुछ नया लिखने को प्रेरित करती है 
कोई महंगी चीज ख़रीदकर दो 
तो डांटती है क्या जरूरत थी इतने खर्चे की
उसे डांस नहीं आता पर  
दिन भर नाचती है....सबकी सेवा में.... 
फोन करती है.....मगर मां बापू को, उनकी खैर पूछने,
सिर्फ अपना ध्यान नहीं रखती 
पूछो तो हँसकर कहती है 
आप ठीक तो मैं ठीक 
खुद के लिए नहीं जीती 
लेकिन मुझे कभी 
एक बार भी आई लव यू नहीं बोलती 
मगर कोई कह सकता है ?
वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

जो खुद गुलाब है 
उसे क्या गुलाब दूं ?
जिसका हर दिन वेलेंटाइन है 
उसपर जान कुर्बान दूं ।

- कुमार अनेकान्त १४/०२/२०१८ 
(उसकी बिना अनुमति के एक दिन बाद प्रकाशित)

Tuesday, February 13, 2024

प्रेम चतुर्दशी

वेलेंटाइन डे स्पेशल 
प्रेम चतुर्दशी विशेष

पेमचउद्दसी दिणे,
जीवं णेहं कीरदि णाजीवं ।
अजीवस्स उवयोगो,
ण विवरीयं खलु कादव्वं ।।

प्रेम चतुर्दशी के दिन यह शिक्षा लेनी चाहिए कि चेतन को प्रेम करना चाहिए अचेतन को नहीं । अचेतन का उपयोग करना चाहिए । इसके विपरीत (लोग अचेतन से प्रेम करते हैं और चेतन का उपयोग )निश्चित रूप से ऐसा नहीं करना चाहिए । 
चेतन से प्रेम और अचेतन का उपयोग - यही सच्चे प्रेम की सनातन परंपरा है ।

कुमार अनेकांत 
14/02/24

सहजता ही प्रेम है

Monday, February 12, 2024

निजदोषों का दर्शन ( प्राकृत गाथा )

दस्सदि खलु णियदोसं ,
सज्झायेण णाभावदोसाणं ।
अभावो य होदि तस्स ,
तवचरित्ताप्पाणुभवेण ।।

स्वाध्याय से निजदोषों का दर्शन तो होता है किंतु उन दोषों का अभाव नहीं होता ,उन दोषों का अभाव तप चारित्र और आत्मानुभव से ही होता है । 

©कुमार अनेकांत
12/2/24

Sunday, February 11, 2024

विपत्ति काल ( प्राकृत गाथा )

पस्सइ कालगहवत्थु
परदोसं मणुसो विवत्तिकाले ।
ण  पस्सइ कम्मदोसा,
अम्मं कहं बबइबबूलेण ।।

बुरे दिन आने पर मनुष्य कालसर्प दोष,ग्रह दोष,वास्तु दोष , परिजनों के दोष आदि बाहर में ही दोष तो देखता है किन्तु स्वयं अपने कर्मों के दोष नहीं देखता । यह भी विचारना चाहिए कि बबूल के बोने पर आम भला कैसे हो सकता है ? 

कुमार अनेकांत 
12/2/24

Friday, February 9, 2024

ठंडक ( Prakrit poetry)

ठंडक


असुहचिंतगविपदे वि
कीरइ य सहाणुभूइपदंसणं ।
कट्ठेहं दंसणेण ,
हिययो तस्स होइ सीयलं ।।

मेरा अहित चिंतन करने वाला भी विपदा के समय मेरे पास आकर सहानुभूति प्रदर्शित करता है ,(ऐसा क्यों न हो ) मैं कष्ट में हूँ ,ऐसा देखकर उसके हृदय को ठंडक जो पड़ती है ।

©कुमार अनेकांत 
10/2/24

Thursday, February 8, 2024

ज्येष्ठ प्रेम ( प्राकृत काव्य )

ज्येष्ठ प्रेम 

जेट्ठोमि सया अहं 
तुम्हत्तो तुम्हे य वसइ हियये।
जइ च इच्छदि सम होदु
सगहियये खलु वसदु ममावि ।।

मैं तुमसे सदा ज्येष्ठ ( सिद्ध होता) हूँ ,क्यों कि तुम मेरे हृदय में रहते हो ।और यदि (तुम भी) मेरे समान(  ज्येष्ठ) होना चाहते हो तो मुझे भी अपने हृदय में जरूर बसा लो ।

©कुमार अनेकांत
10/2/24

Monday, February 5, 2024

व्यर्थ प्रयत्न ( प्राकृत गाथा )

अंधयारे य छाया ,
जरे काया मरणमाया कयावि ।
ण खलु ददइ सहजोगं,
पयत्तं जहासक्कं  ।।
अंधकार में छाया ,बुढ़ापे में  काया और मृत्यु के समय माया,निश्चित ही कभी भी सहयोग नहीं देती है ,यथा शक्ति कितना भी प्रयत्न कर लो ।

©कुमार अनेकांत 
6/2/24

समय का सदुपयोग (उग्गाहा)

समय का सदुपयोग 
(उग्गाहा)

ण भविस्सइ समागमो,
सया भविस्सइ ण अहं भविस्सामि।
जदि दुवे य भविस्सन्ति,
ण भावं सिग्घधम्मं करिदव्वं ।।



यह सत्समागम हमेशा नहीं रहेगा ,यदि रहा तो हम न रहेंगे ,यदि ये दोनों  रहे तो जरूरी नहीं कि वैसे शुद्ध भाव रहें ,जैसे आज हैं । अतः यथा शीघ्र धर्म (आत्मानुभव)कर लेना चाहिए ।

कुमार अनेकांत 
5/02/23

Sunday, February 4, 2024

महत्वपूर्ण शेर शायरी (स्वरचित और संकलित)


क्या अजब जज़्बा है इश्क़ करने का 
उम्र जीने की है और शौक़ मरने का ॥

यक़ीनन ढूँढने होंगे हज़ारों बाग़बाँ हमको 
मगर उन पर भी नज़रें हों जो शाखें तोड़ देते हैं

की वो वक्त गुजर गया
जब तेरी हसरत थी हमें
अब तू खुदा भी बन जा
तो भी हम सजदा नहीं करेंगे...


तेरे सजदे के वास्ते नहीं चाहता खुदा होना 
खुद को जान लूँ तो खुदा हो जाऊं मैं

सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह ।
वहाँ हम इबादत को जाते हैं सैर को नहीं ।।
©कुमार अनेकान्त
24/11/22

लोग चाहते होंगे तुम्हें खूबियों से मगर ।
हम तो फिदा  ही तेरे गुनाहों पर हैं ।।
- कुमार अनेकान्त 
16/04/2016


मौत तो बहाना था उसूल उसे निभाना था।
वरना पल पल मरे हैं तेरे बिन जीते जीते ।।        ©-कुमार अनेकान्त                        

खुद अटकने से अटका , कोई और नही अटकाता ।                       
खुद को भूला, भटका , कोई और नहीं भटकाता।।-
   -   कुमार अनेकान्त (०५/०२/२०१६)

उधर दस वर्फ की चादर में सो गये,
ताकि हम रजाईयों में  सोते रहें ।
इधर दस ने तोड़ दीं सुहागा चूड़ियां ताकि
करोड़ों कलाईयों के कंगन यूं ही बजते रहें।।
-कुमार अनेकान्त

कायनात भी चाहे उसके खिलाफ हो,
पर वोट उसे ही दें जिसकी नीयत साफ़ हो |
©कुमार अनेकांत 2014

"गर तू जिंदा है तो ज़िन्दगी का सबूत दिया कर !
वरना, ये ख़ामोशी तो कब्रिस्तान में भी बिखरी देखी है
हमने !!"

अभी साजों के तराने बहुत हैं 
अभी जिंदगी के बहाने बहुत हैं 
ये दुनिया हकीकत की कायल नहीं है 
फसाने सुनाओ फसाने बहुत हैं ।

वो कतरा होकर भी, आपे से बाहर.. है!!
हम दरिया होकर भी, अपनी हद में रहते हैं..!!


मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है 
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है 

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है 
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है 

नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए 
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है 

थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें 
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है 

बहुत बेबाक आँखों में तअ'ल्लुक़ टिक नहीं पाता 
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है 

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का 
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है 

मेरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो 
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है 
               वसीम बरेलवी

समय ने जब जब अंधेरों से  दोस्ती की है
हमने अपना घर फूंक कर रोशनी की है


तुम्हें जीने में आसानी बहुत है।
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है।।


लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है
तुम झुठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है 
इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें 
कानून तुम्हारा है, दरबार तुम्हारा है
सूरज की तपन तुमसे बर्दास्त नही होती 
एक मोम के पुतले सा किरदार तुम्हारा है
वैसे तो हर एक शह में जलवे हैं तुम्हारे ही
दुश्वार बहुत लेकिन दीदार तुम्हारा है


एक वक्त था जब यकीं तेरे  जादू पर भी था
अब तो तेरी हकीकत भी शक के घेरे में है
…......


सच आज भी है खामोश कि खता न हो जाये।       झूठ चिल्ला रहा है कि सच बयां न हो जाये।।                     -कुमार अनेकान्त 3//4/2016


दो चार बार हम जो जरा हँस हँसा लिए 
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए 
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर 
अच्छा हुआ मेरे आपने सपने चुरा लिए

अपने मेयार से नीचे तो मैं आने से रहा,
शेर भूखा हो मगर घास तो खाने से रहा।
कर सको तो मेरी चाहत का यकीन कर लेना,
अब तुम्हें चीर के मैं दिल तो दिखाने से रहा।।

(~महशर आफरी


बशीर बद्र के टॉप 20 शेर

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए 

  कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता 
 
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं 
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 

 दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे 
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों 

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं 
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे 

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी 
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी 

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो 

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा 
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा 

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में 

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें 
उदास होने का कोई सबब नहीं होता 

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे 
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला 
 
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है 
रहे सामने और दिखाई न दे 

इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं 
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं 

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है 
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे 

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा 
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा 

जी बहुत चाहता है सच बोलें 
क्या करें हौसला नहीं होता 

आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है 
बेवफ़ाई कभी कभी करना 

उस की आँखों को ग़ौर से देखो 
मंदिरों में चराग़ जलते हैं 

मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए 
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं

ये हैं मशहूर शायर वसीम बरेलवी के 20 बड़े शेर

1.अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

2.मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा

3.झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

4.उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
जिस रिश्ते की ख़ातिर मुझ से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया

5.उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

6.क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया

7.दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी

8.एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत
उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है

9.चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को

10.तुम साथ नहीं हो तो कुछ अच्छा नहीं लगता
इस शहर में क्या है जो अधूरा नहीं लगता

11.मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते

12.जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से
कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो

13.दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

14.निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते

15.जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

16.वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता

17.हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

18.हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसलिए तो किसी की नज़र में आ न सके

19.आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

20.ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

हर सजा कबूल है मुझे ,                        
मगर शर्त इतनी सी है ।                      
गुनाहों की जो करे सुनवाई,                  
बेगुनाह होना चाहिए।।

उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया 
तो वो दौड़ते गए
हमें सुकून में कामयाबी नज़र आई 
तो हम ठहर गए
ख्वाहिशों के बोझ में बशर
तू क्या कर रहा है
इतना तो जीना नहीं 
जितना तू मर रहा है

हार जाती है हर साजिश 
मुझे नाराज करने की 
मुझे खुश करने की 
कोशिश नहीं करनी पड़ती 
-कुमार अनेकान्त

Always be happy
मुश्किल कोई आन पड़ी तो घबराने से क्या होगा
जीने की तरकीब निकालो मर जाने से क्या होगा
बड़े सलीके से अपने लबों को खोलना है।
जहां पे कोई ना बोले वहीं पे बोलना है।।
उड़ान देगा यक़ीनन वो आसमां वाला।
हमारा काम तो अपने परों को खोलना है।।
किस्मत ने लिखे हैं कैसे कैसे रूप  ,
तदबीरें भी जिसकी गुलाम हो गईं ।
जाने कैसे रोका है उसने सैलाब को, 
आंखें भी आसुओं का बांध हो गईं ।।

कुमार अनेकान्त ©

Saturday, February 3, 2024

निंदा....( प्राकृत गाथा )

निंदा....

करदु करदु मम णिंदा , गइदूण पइगेहे य जहासक्कं ।
पसिद्धो होदि तुम्हे
वि निंदगसम्माटरूवेण ।। 


करो करो खूब करो,बल्कि घर घर जाकर मेरी निंदा जितनी कर सको उतनी करो ,(क्यों कि) इससे तुम भी निंदक सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे ।

©कुमार अनेकांत 
2/2/24

Saturday, January 27, 2024

तित्थसंरक्खणं / तीर्थ संरक्षण

वड्ढदु णूयणतित्थं
सया मम कामणा पुरातित्थं वि ।
बालगस्स लालणे वि
मूलरक्खणं मा विस्सरिदव्वं ।।
मेरी कामना है कि सदा नए तीर्थों का निर्माण हो किन्तु प्राचीन तीर्थ भी संरक्षित हों ,उनका विकास हो । नवजात बालक के लालन पालन में मूल माता पिता और दादा दादी का रक्षण नहीं भूलना चाहिए ।

©कुमार अनेकांत 
28/1/24

Sunday, January 21, 2024

मैं राम होना चाहता हूँ

मैं श्रीराम होना चाहता हूँ 
- कुमार अनेकांत जैन 

मैं राम होना चाहता हूँ ,श्री राम होना चाहता हूँ ,
तोड़कर अब सारे बंधन भगवान् होना चाहता हूँ ।

ऋषभ के आदर्श को स्वीकार करना चाहता हूँ 
भरत सा निर्लिप्त जीवन आज जीना चाहता हूँ ।

मैं राम होना ....

अजित होकर आत्मा में  विश्राम लेना चाहता हूँ, 
सुमतिवत् शुद्धात्मा का राम होना चाहता हूँ ।  

मैं राम होना....
                             तोड़कर अब सारे बंधन अनंत होना चाहता हूँ,
भोग के इस सरोवर में पद्म होना चाहता हूँ ।

मैं राम होना....

ऋषि मुनि की इस धरा पर मुक्त जीना चाहता हूँ,दया अहिंसा से जगत को अवध करना चाहता हूँ ।

मैं राम होना....

नगरी विनीता की धरा से निरहंकार होना चाहता हूँ,                          शिथिल हों अब सारे बंधन अभिनंदन होना चाहता हूँ ।

मैं राम होना.....

सुव्रत मुनि के आचरण का अंजाम होना चाहता हूँ,संसार सागर पार अभिराम होना चाहता हूँ ।

मैं राम होना....

अनंत जन्म के कर्मधनुष का शीध्र भंजन चाहता हूँ ।
मुक्ति सीता का वरणकर निष्काम होना चाहता हूँ ।

मैं राम होना...

देख नश्वर जगत को जो 
स्वयं वैरागी हुए,
उस विरागी दशरथ की संतान होना चाहता हूँ। 

मैं श्री राम होना चाहता हूं ,तोड़कर अब सारे बंधन निष्काम होना चाहता हूँ ।

सम्यक्त्व अयोध्या की धरा पर ज्ञानमंदिर चाहता हूँ,
और उसके भाल पर शिखर होना चाहता हूँ। 

राम होना...
तोड़कर मैं सारे बंधन श्री राम होना चाहता हूं ।

प्राप्तकर शुद्धात्मा खुद में बरसना चाहता हूँ, 
मांगीतुंगी के शिखर से सिद्ध होना चाहता हूँ।। 
               
राम होना --2
तोड़कर अब सारे बंधन भगवान् होना चाहता हूँ,मैं श्री राम होना चाहता हूँ- 2

21/01/24

Monday, January 8, 2024

अयोध्या (प्राकृत गाथा )

धण्णो णव अयोज्झा 
उसह-भरह-बाहुबली-अजिय-सुमइ ।
पवित्तो खलु जम्मभूमि 
अहिणंदण-अणंत-रामो य ।।

यह नई अयोध्या धन्य है जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव,उनके पुत्र भरत (जिनके नाम पर देश का नाम भारत हुआ )तथा बाहुबली ,द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ,चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दननाथ,पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ ,चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ तथा भगवान् श्री राम की पवित्र जन्मभूमि है ।

कुमार अनेकांत 
9/1/24