बशीर बद्र के टॉप 20 शेर
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
मंदिरों में चराग़ जलते हैं
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं
ये हैं मशहूर शायर वसीम बरेलवी के 20 बड़े शेर
1.अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
2.मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
3.झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
4.उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
जिस रिश्ते की ख़ातिर मुझ से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया
5.उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
6.क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया
7.दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी
8.एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत
उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है
9.चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को
10.तुम साथ नहीं हो तो कुछ अच्छा नहीं लगता
इस शहर में क्या है जो अधूरा नहीं लगता
11.मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते
12.जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से
कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो
13.दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
14.निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते
15.जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
16.वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
17.हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
18.हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसलिए तो किसी की नज़र में आ न सके
19.आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
20.ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी
हर सजा कबूल है मुझे ,
मगर शर्त इतनी सी है ।
गुनाहों की जो करे सुनवाई,
बेगुनाह होना चाहिए।।
उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया
तो वो दौड़ते गए
हमें सुकून में कामयाबी नज़र आई
तो हम ठहर गए
ख्वाहिशों के बोझ में बशर
तू क्या कर रहा है
इतना तो जीना नहीं
जितना तू मर रहा है
हार जाती है हर साजिश
मुझे नाराज करने की
मुझे खुश करने की
कोशिश नहीं करनी पड़ती
-कुमार अनेकान्त
Always be happy
मुश्किल कोई आन पड़ी तो घबराने से क्या होगा
जीने की तरकीब निकालो मर जाने से क्या होगा
बड़े सलीके से अपने लबों को खोलना है।
जहां पे कोई ना बोले वहीं पे बोलना है।।
उड़ान देगा यक़ीनन वो आसमां वाला।
हमारा काम तो अपने परों को खोलना है।।
किस्मत ने लिखे हैं कैसे कैसे रूप ,
तदबीरें भी जिसकी गुलाम हो गईं ।
जाने कैसे रोका है उसने सैलाब को,
आंखें भी आसुओं का बांध हो गईं ।।
कुमार अनेकान्त ©